ओडीएफ गांव के  स्कूलों का शौचालय जर्जर

ओडीएफ गांव के  स्कूलों का शौचालय जर्जर

खुले में शौच जाने को मजबूर हैं स्कूली बच्चे

नवभारत सरायपाली.  राज्य शासन जहां पूरे प्रदेश को खुले में शौचमुक्त बनाने के लिए संकल्पित है तो वहीं जिला एवं ब्लॉक स्तर के तमाम अधिकारी भी बलॉक एवं जिले को शौचमुक्त बनाकर ग्रेड बढ़ा रहे हैं. लेकिन अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों को केवल गांव को ओडीएफ बनाने की ही चिंता है, जबकि जो स्वच्छता के लिए जागरूक हैं एवं जिनके बच्चे जहां विद्या ग्रहण करते हैं और जिसे विद्या का मंदिर कहा जाता है उसकी चिंता किसी को नहीं है. ब्लॉक के दर्जनों स्कूलों का शौचालय जर्जर हालत में है, जहां के बच्चे खुले में शौच जाने के लिए मजबूर है. 
    ब्लॉक के कई स्कूलों का निरीक्षण करने पर देखा गया कि कुछ स्कूलों में तो शौचालय ठीक-ठाक है, लेकिन दरवाजा टूटा हुआ था, तो कुछ शौचालय के शीट, दरवाजा पूरी तरह से जर्जर हालत में देखे गए. वहीं किसी में विकलांग शौचालय का उपयोग करते देखा गया तो कुछ में बाहर खुले में शौच के लिए जाना मजबूरी हो गया था. जबकि सभी स्कूलों के शिक्षकों से चर्चा में यह बात सामने आई कि तमाम अधिकारियों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों को शौचालयों कि स्थिति के बारे में अवगत करा दिया गया है, बावजूद किसी ने भी शौचालयों कि स्थिति को सुधारने की जहमत नहीं उठाई. जब स्कूल में शौचालयों का ही बुरा हॉल है, तो ऐसे गांव के ओडीएफ होने का क्या अर्थ है.  पालक अपने घर में शौचालय बनाकर बच्चों को खुले में शौच जाने के लिए मना करते हैं और शासन के आदेश का पालन करते हैं, लेकिन जब वही बच्चे स्कूल जाते हैं तो उनके बच्चों को शौचालय तक नसीब नहीं होता. विद्यार्थियों के लिए यह एक दुखद पहलू है कि जहां उन्हें खुले में शौच करने के लिए मना करने का ज्ञान मिला और उसे घर जाकर परिजनों को जानकारी देकर अमल भी किया. उसे ही स्कूल में शौचालय नसीब नहीं हो रहा है. आज स्थिति यह हो गया है कि पालक स्वयं स्वच्छता के प्रति जागरूक हो गए हैं और वे अपने बच्चों को शिक्षकों के माध्यम से अतिशीघ्र स्कूल में शौचालय बनवाने के लिए कह रहे हैं.
    राज्य शासन मार्च 2018 में पूरे प्रदेश को ओडीएफ घोषित करने के लिए  लगे हुए हैं. सरकार को केवल गावों की चिंता है लेकिन स्कूलों की नहीं. गांव को ओडीएफ घोषित करने सरकार के पास फण्ड है, लेकिन स्कूलों को ओडीएफ करने के लिए नहीं. कई स्कूलों में शौचालय तैयार हैं, लेकिन उसे भी मरम्मत की आवश्यकता है. 
    निरीक्षण में गए ब्लॉक के स्कूल अंतरझला प्राथमिक शाला की कुल दर्ज 58 बच्चों में से 26 बालक , 32 बालिकाओं के लिए बने  बालक शौचालय विगत 3-4 वर्षों से जर्जर हालत में है, जिसकी  सूचना वहां के प्रधान पाठक श्वेतकुमार प्रधान द्वारा बीईओ, बीआरसी, सीएचसी को लिखित में अवगत कराया जा चुका है. इसी तरह कोटद्वारी मिडिल स्कूल में 106 बच्चे हैं, जिसमें 45 बालक, 62 बालिकाएं हैं. यहां दोनों के शौचालयों के  दरवाजा का आधा भाग पूरी तरह से टूट गया है. दरवाजा के अभाव में शौचालय अनुपयोगी हो गया है, यहां के बच्चे प्रायमरी के विकलांग शौचालय का उपयोग करते हैं. इसी तरह प्रा. शाला सलडीह का भी बालक शौचालय का दरवाजा पूरी तरह से टूट गया है. इसी तरह ब्लॉक के कई स्कूलों में शौचालय अनुपयोगी हो गया है, लेकिन यहां के शौचालय को देखने के लिए किसी भी अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों को फुरसत नहीं है. 

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